मनहूस कोठी भाग - 2
कहानी _ **मनहूस कोठी **
भाग _2
लेखक_ श्याम कुंवर भारती
प्रभा देवी को लगा कोई उनके बालो से खेल रहा है। उसे अपने हाथ को सर पर इधर उधर घुमाया ।गाड़ी में आपकी सीट के आस पास सब तरफ देखा कही कोई नजर नहीं आया ।आगे ड्राइजिंग सिट पर उनके पति चुपचाप गाड़ी ड्राइव कर रहे थे।
एक बार फिर उनको अपने बालो पर किसी के हाथ का एहसास हुआ ।भय से उनका शरीर सिहरने लगा।उनके रोंगटे खड़े होने लगे।
लेकिन कोई दिख नहीं रहा था । सिर्फ उसके हाथो का एहसास हो रहा था।अब उनसे रहा नही गया।उसने अपने पति से गाड़ी रोकने कहा ।गाड़ी झटके के साथ रुक गई और रामजी ने पूछा_ क्या हुआ गाड़ी क्यों रुकवाई ।
लेकिन प्रभा ने कोई जवाब नहीं दिया ।तुरंत गाड़ी का गेट खोला और उतरकर उसे बंद कर आगे का गेट खोलकर बोली जल्दी चलिए मुझे बड़ा डर लग रहा है जी ।
राम जी कों बड़ा आश्चर्य हुआ ।बोले लेकिन क्यों डर रही हो यहां तो कोई नही है।
कोई दिख नहीं रहा है लेकिन लग रहा है कोई और भी है गाड़ी में इसलिए डर लग रहा है ।प्रभा ने जल्दी से गेट बंद करते हुए कहा।
अजीब बात कर रही हो मुझे तो कुछ नही लग रहा है खैर चलो चलते हैं।फिर रामजी ने गाड़ी स्टार्ट कर आगे बढ़ा दिया और सीधे घर पर ही जा कर रुके ।
कुछ ही दिनों में मजदूर लगाकर पूरी कोठी की साफ सफाई और रंग रोपण शुरू किया गया ।
एक दिन एक मजदूर बांस की सीढ़ियों से अपने आप गिर गया। उसका एक हाथ टूट गया ।उसे लगा जैसे किसी ने उस धक्का दे दिया ।लेकिन कौन धक्का दिया होगा वहा पर तो वो अकेले ही काम कर रहा था ।एक मजदूर के सिर पर ऊपर से एक इंटा आकर गिरा उसका सिर जख्मी हो गया और उसके सिर से खून बहने लगा।उसका तुरंत इलाज करवाया गया । वे दोनो मजदूर फिर दुबारा काम पर नहीं आए ।किसी तरह दूसरे मजदूरों को काम पर लगाया गया।
बढ़ई मिस्त्री जी खिड़की दरवाजों को मरम्मत कर रहा था ।बहुत परेशान हो गया था ।बड़ी मेहनत से जिस खिड़की दरवाजे को बनाता था उसके हटते ही वो फिर उसी तरह टूट फूट जाता था।
कई कमरे ऐसे थे जहा दिन में भी अंधेरा रहता था । जहां से अजीब अजीब आवाजे आती थी ।कभी किसी के रोने की कभी किसी के हसने की ।कभी लगता था जैसे किसी की जान जा रही हो इस तरह चिल्लाता था।
कभी कभी तो ऐसा लगता था जैसे कोई आपस में झगड़ा कर रहा हो मगर कही कोई दिखता नही था।
मजदूर वहा काम करने से कतरा रहे थे।
रामजी को समझ में नही आ रहा था आखिर इस कोठी में ये सब क्या हो रहा है।कैसे हो रहा है।कही अगल बगल वाले पड़ोसियों की कोई साजिश तो नहीं है।ताकि कोठी की मरम्मत न हो सके और हमलोग डर से कोठी छोड़कर चले जाए।
चाहे जो भी हो जाए कोठी की मरम्मत का काम तो नही रुकेगा ।
बड़ी मसक्कत से और दुगुनी मजदूरी देकर किसी तरह एक सप्ताह में पूरी कोठी की मरम्मत ,साफ सफाई और रंग रोपण हो गया।
राम जी ने अपने दोनो लडको को भी बुला लिया था क्योंकि गृह प्रवेश करना था।।
पंडित जी से मुहूर्त निकालकर राम जी ने गृह प्रवेश का तिथि तय कर दिया ।
बड़े लड़के दिव्यांश ने कहा_ पापा इतनी बड़ी कोठी की देख देख हम सबके अकेले की बस की बात नही है।इसलिए एक दरबान और दो नोकर भी रखना होगा ।बाकी कमरे किराए पर दे देंगे ।
जब तक किरायेदार नही मिलते हम दोनो भाई दरबान और नौकरों का खर्चा मिलकर उठा लेंगे।
राम जी ने कहा ठीक है।
समय पर गृह प्रवेश का कार्यक्रम शुरू हो गया ।राम जी ने अपने मित्रो ,ऑफिस के सहकर्मियों और मोहल्ले के पड़ोसियों को भी बुलाया।बाकी लोग तो आ गए लेकिन उनके पड़ोसी नही आए।
सत्यनारायण भगवान की कथा कराई गई।लेकिन ब्राह्मण जो कथा करने आए थे उनकी बड़ी दुर्दसा हुई।उनकी पोथी में आग लग गई ।हवन कराते समय आहुति दिलवाते समय उनका हाथ बुरी तरह जल गया। वे बुरी तरह दर्द से चिल्लाने लगे।
छोटी बहु ने बोर्नोल लाकर उनके जले हुए हाथ पर लगा दिया ।उनको थोड़ी राहत हुई ।
पूजा पाठ के बाद भोजन करते समय उनके भोजन में पता नही कहा से हड्डी आ गई ।बेचारे पंडित जी बिना भोजन के ही दक्षिणा लेकर चले गए।
राम जी और घर वाले बहुत दुखी हुए।
राम जी ने दोनो बहुओं के लिए अलग अलग कमरा दे दिया ।खुद अपने लिए एक कमरा बरामदे के बगल में ले लिया।रसोई घर ,शौचालय , स्टोर रूम,बैठक खाना ,अतिथि गृह और बच्चो के के खेलने के लिए भी अलग से कमरा खिलौने से भरा हुआ सब था ।इसके बाद भी पांच बड़े बड़े कमरे पूरी सुविधा सहित बचे हुए थे जिन्हें किराए पर देना का सोचा गया था।
उस रात राम जी बरामदे में ही अपना बिछौना लगाकर सोए हुए थे ।दिन भर की भाग दौड़ की वजह से उन्हें बहुत जल्दी नींद आ गई। वे खराटे लेने लगे।
उनका खर्राटा पूरी कोठी में गूंज रहा था ।पहले भी वे खर्राटे लेते थे लेकिन इतना डरावना नही लगता था।
तभी किसी ने उनके गाल पर एक तमाचा मारा और बोला _ बदतमीज नींद हराम कर रहा है।चुपचाप सो वरना तेरा गला दबा दूंगा ।
नींद में इतने जोर का थप्पड़ खाकर राम जी हड़बड़ा कर उठ बैठे।लेकिन वहा आस पास कोई नही था ।उनको अपने गाल पर थप्पड़ खाने का दर्द अभी भी महसूस हो रहा था।शायद वो कोई सपना तो नहीं था ।अगर सपना होता तो उनका गाल में क्यों दर्द क्यों होता।
थप्पड़ इतना जोर से लगा था की उनका गाल लाल हो गया था। वे अपना गाल सहलाते हुए डर से कांपने लगे ।आखिर किसने उन्हे थप्पड़ मारा होगा।
हिम्मत जुटाकर उन्होंने जोर से कहा _ मुझे किसने थप्पड़ मारा सामने आओ।
तभी उनके सामने की कुर्सी हिलने लगी।जैसे कोई उसपर बैठ कर हिला रहा हो ।राम जी को यह सब देखकर पसीने छूटने लगे।
देखो तुम जो भी हो सामने आओ और बताओ मुझे थप्पड़ क्यों मारा। वे फिर जोर से बोले ।
तभी उनकी पत्नी प्रभा डर से चीखते हुए भागती हुई उनके पास आई।वो बड़ी बदहवास थी।उसेके होश उड़े हुए थे।
अरे तुमको क्या हुआ ।क्यों इतनी घबड़ाई हुई भागते हुए आ रही हो ।राम जी ने प्रभा से पूछा ।
वहा मेरे कमरे में मेरे बिस्तर पर मेरे साथ एक लड़की सोई हुई थी ।मुझे आंटी आंटी बोल रही थी ।बोली मुझे भूख लगी है खाना दो ।
मैं जैसे ही अपने बिस्तर से उठी वो गायब हो गई ।
मुझे तो बहुत डर लग रहा है जी । जबसे ये कोठी लिया है । हमेशा कुछ न कुछ अजीब हो रहा है।कही हम लोग इसे लेकर किसी मुसीबत में तो नही फंस गए।
प्रभा देवी ने चिंतित होकर कहा।
तुम ठीक कह रही हो प्रभा मुझे भी कुछ ऐसा ही लग रहा है।शायद इस लिए मोहल्ले वाले इस कोठी के बारे में अजीब अजीब बात कर रहे थे।
मेरे बुलाने पर गृह प्रवेश में भी नहीं आए।कुछ सोचना पड़ेगा । वे दोनो अभी बातचीत कर ही रहे थे की तभी उनकी दोनो बहुएं अपने बच्चो को लेकर भागती हुई आई ।उनके पीछे उनके दोनो बेटे थे।
उनका चीखना चिल्लाना सुनकर दोनो और घबड़ा गए।राम जी ने पूछा और तुम लोग क्यों इस तरह भागते हुए और डरे हुए आ रहे हो। क्या हुआ है।
छोटी बहु ने कहा _ मेरे कमरे में एक बहुत ही सुंदर और जवान लड़की खून से लथपथ आई हुई थी और अपनी जान बचाने के लिए ची ख चिल्ला रही थी। जैसे ही मैं उठी वो गायब हो गई।
बड़ी बहू ने कहा मेरे कमरे में एक बूढ़ी औरत जली हुई हालत में आई थी। बचाओ बचाओ चिल्ला रही रही ।मां जी बड़ी डरावनी लग रही थी ।फिर वो अचानक बंद कमरे से पता नही कहा गायब हो गई।
तभी प्रभा देवी जोर से चीख पड़ी ।सब लोग चौंक कर उधर देखने लगे।
वो इसारे से सामने अंगुली से इशारे कर रही थी।
सामने देख कर सबको जैसे सांप सूंघ गया ।सबकी घिग्घी बंध गई ।सबकी सांसे उनके हलक में जैसे अटक गई थी।
सामने एक भयंकर और डरावना आदमी खडा था उसके हाथ में तलवार थी ।उसके सामने एक बूढ़ी औरत,एक जवान लड़की और एक ग्यारह साल की छोटी बच्ची खड़े थे और उसे खूंखार आदमी से लड़ रहे थे । बूढ़ी औरत बोली तुमको हमलोग नही छोड़ेंगे ।जिंदा था तो जल्लाद की तरह सताता था हमे ।मेरी बेटी की इज्जत लूट लिया पापी कही का और उसे तलवार से काटकर मार डाला ।मुझे जलाकर मारा। मेरी फूल से नन्ही बेटी को कुंआ में फेंक कर मार डाला ।अब तुझे हम तड़पा तड़पा कर चैन से रहने नही देंगे।
अरे जाओ तुम लोग मेरा बाल भी बांका नहीं कर पाओगी। और जो भी तुम तीनो की मदद करेगा उसको भी नही छोडूंगा।
दोनो बहुओं ने डर से चिल्लाकर कहा _ पापा की यही सब थे हमारे कमरे में ।प्रभा देवी ने कहा _ यही लड़की मेरे साथ सोई थी और खाना मांग रही थी ।
शेष अगले भाग _ 3 में
लेखक _ श्याम कुंवर भारती
बोकारो, झारखंड
मोब.9955509286
Punam verma
06-Nov-2023 08:11 AM
Nice👍👍
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Reena yadav
01-Nov-2023 07:52 PM
👍👍
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Mohammed urooj khan
01-Nov-2023 01:01 PM
👍👍👍👍
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